
सूर्य 15 दिसंबर को रात 10 बजकर 19 मिनट पर धनु राशि में प्रवेश कर जाएंगे और 14 जनवरी 2025 तक इसी राशि में रहने वाले हैं।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि सूर्य के धनु राशि में प्रवेश से खरमास का प्रारंभ हो जायेगा। खरमास को अशुभ समय माना जाता है। इस दौरान लोग विवाह, लग्न आदि जैसे कोई भी शुभ अनुष्ठान और उत्सव नहीं करते।
सूर्य को आत्मा का कारक के अलावा अंहकार, नौकी, मान-सम्मान, आत्म विश्वास आदि का कारक माना जाता है। इसके अलावा सूर्य को पिता, सरकार, नेता, राजा, उच्च अधिकारी का भी कारक माना जाता है।
इस महीने को माना जाता है मिनी पितृ पक्ष
धनुर मास पितरों की मुक्ति दिलाने वाला माह कहा जाता है. इस माह में पिंडदान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस माह में पितरों के निमित्त पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। वे सीधे वैकुंठ की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। इसीलिए इस महीने को मिनी पितृ पक्ष भी माना जाता है।हालांकि, इस माह में सभी तरह के मांगलिक कार्यों पर प्रतिबंध लग जाता है।धनुर मास में गया तीर्थ आकर पितरो के निमित पिंडदान करें, तो पितर तृप्त होकर तुरंत उतम लोक की ओर अग्रसर हो जाते हैं. अपने बच्चो को आयु आरोग्य ऐश्वर्य आशीर्वाद देते है।
ख़रमास कब और क्यों लगता है
सूर्य देव को ग्रहों का राजा माना जाता है।वे 12 राशियों में क्रमवार गोचर करते हैं, उसका शुभ और अशुभ प्रभाव लोगों पर पड़ता है।सूर्य जब देव गुरु बृहस्पति की राशियों मीन और धनु में प्रवेश करते हैं तो उस समय खरमास लग जाता है।यह खरमास अंग्रेजी कैलेंडर के मार्च-अप्रैल और दिसंबर-जनवरी के बीच लगता है। वहीं हिंदू कैलेंडर के अनुसार, खरमास फाल्गुन-चैत्र और मार्गशीर्ष-पौष माह के बीच लगता है। इस साल 2024 में खरमास 15 दिसंबर को लगेगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव जब देव गुरु बृहस्पति की राशि में प्रवेश करते हैं तो उनका तेज कम हो जाता है।इस वजह से लोग इस दौरान कोई मांगलिक कार्य नहीं करते हैं. हालांकि यह भी तर्क दिया जाता है कि सूर्य देव अपने गुरु की सेवा करने लगते हैं और वे किसी मांगलिक कार्य में उपस्थित नहीं होते हैं. मांगलिक कार्यों में नवग्रहों की पूजा होती है, उनके लिए हवन करते हैं।जब ग्रहों के राजा सूर्य ही उपस्थित नहीं होंगे तो मांगलिक कार्य कैसे होंगे।इस वजह से जब भी सूर्य देव बृहस्पति की राशियों मीन और धनु में आते हैं तो खरमास लग जाता है।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने सात घोड़ों के रथ पर बैठ कर पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा के दौरान सूर्य का रथ एक क्षण के लिए भी नहीं रुकता। लेकिन निरंतर चलते रहने से तथा सूर्य की गरमी से घोड़े प्यास और थकान से व्याकुल होने लगे। घोड़ों की यह दयनीय दशा देखकर सूर्य देव उन्हें विश्राम देने के लिए और उनकी प्यास बुझाने के उद्देश्य से रथ रुकवाने का विचार करते हैं।लेकिन उन्हें अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण हो आता है कि वे अपनी इस अनवरत चलने वाली यात्रा में कभी विश्राम नहीं लेंगे। तभी सूर्य को एक तालाब के पास दो खर (गधे) दिखाई दिए। उनके मन में विचार आया कि जब तक उनके रथ के घोड़े पानी पीकर विश्राम करते हैं, तब तक इन दोनों खरों को रथ में जोतकर आगे की यात्रा जारी रखी जाए। ऐसा विचार कर सूर्य ने अपने सारथि अरुण को उन दोनों खरों को घोड़ों के स्थान पर जोतने की आज्ञा दी। सूर्य के आदेश पर उनके सारथि ने खरों को रथ में जोत दिया। खर अपनी मंद गति से सूर्य के रथ को लेकर परिक्रमा पथ पर आगे बढ़ गए।मंद गति से रथ चलने के कारण सूर्य का तेज भी मंद होने लगा। सूर्य के रथ को खरों द्वारा खींचने के कारण ही इसे ‘खर’ मास कहा गया है। खर मास साल में दो बार आता है। एक, जब सूर्य धनु राशि में होता है। दूसरा, जब सूर्य मीन राशि में आता है। इस दौरान सूर्य का पूरा प्रभाव यानी तेज पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध पर नहीं पड़ता। सूर्य की इस कमजोर स्थिति के कारण ही पृथ्वी पर इस दौरान गृह-प्रवेश, नया घर बनाने, नया वाहन, मुंडन, विवाह आदि मांगलिक और शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। किसी नए कार्य को शुरू नहीं किया जाता। लेकिन इस मास में सूर्य और बृहस्पति की अराधना विशेष फलदायी होती है।
खरमास में क्या न करें
खरमास के समय में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करते हैं और न ही कोई नया काम शुरु करते हैं।खरमास के समय में विवाह, मुंडन, सगाई, जनेऊ, गृह प्रवेश आदि जैसे शुभ कार्य नहीं करते हैं।खरमास में लोग नया मकान बनवाने का शुभ काम नहीं करते हैं और न ही नई दुकान का शुभारंभ करते हैं।इस समय में नए वाहन की खरीदारी भी नहीं करते हैं।
by Astro sunil chopra