फुलेरा दूज अबूझ मुहूर्त, इस दिन विवाह आदि मांगलिक कार्य होंगे

फुलेरा दूज फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 1 मार्च को मनाया जाएगा। यह विशेष रूप से भगवान कृष्ण को समर्पित है और इसे ब्रज क्षेत्र में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया की इस दिन फूलों से होली खेली जाती है, जो वसंत के आगमन का प्रतीक है। इसके साथ ही फुलेरा दूज को अबूझ मुहूर्त माना जाता है। इसलिए इस दिन कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है।
फुलेरा दूज शुभ मुहूर्त
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 01 मार्च 2025 को प्रातः 03 बजकर 16 मिनट पर प्रारंभ होगी और यह 02 मार्च 2025 को 12 बजकर 09 मिनट पर समाप्त होगी. इस प्रकार, उदयातिथि के अनुसार, 1 मार्च 2025 को फुलेरा दूज का पर्व मनाया जाएगा।
फुलेरा दूज पर होंगे रिकॉर्ड तोड़ विवाह
फुलेरा दूज विवाह के लिए बेहद शुभ मानी जाती है, हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जो दंपत्ति फुलेरा दूज के दिन विवाह करते हैं उनके जीवन में कभी कोई परेशानी नहीं आती, साथ ही उनके प्रेम को श्रीकृष्ण और राधा रानी का आशीर्वाद भी मिलता है।विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त होने की वजह से विशेषकर उत्तर भारत में इस दिन रिकॉर्ड तोड़ शादियाँ होती हैं। संपत्ति की खरीददारी, नया काम शुरू करने, आदि जैसे शुभ कार्यों के लिए भी फुलेरा दूज का दिन बेहद शुभ माना जाता है।
फुलेरा दूज पर बनेगे शुभ योग
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर कई मंगलकारी शुभ योग बन रहे हैं।इनमें शुभ, साध्य, त्रिपुष्कर योग और शिववास योग का भी संयोग बन रहा है।इन योग में जगत के पालनहार भगवान कृष्ण और श्रीराधा रानी की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी।साथ ही सुख और सौभाग्य में भी वृद्धि होगी।इसके अलावा घर में सुख-सुख समृद्धि बनी रहेगी।
फुलेरा दूज के दिन ऐसे करें पूजा
इस दिन सुबह जल्दी उठने के बाद स्नान-ध्यान आपको करना चाहिए। उसके बाद सूर्य देव को जल का अर्घ्य चढ़ाना चाहिए। इसके बाद घर के पूजा स्थल पर या किसी राधा-कृष्ण के मंदिर में जाकर जल से राधा-कृष्ण का अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद चौकी पर राधा-कृष्ण जी को विराजमान करके उन पर पुष्प वर्षा करनी चाहिए और दीपक जलाना चाहिए। इसके बाद राधा कृष्ण के मंत्रों का जप और आरती आपको करनी चाहिए। तत्पश्चात नैवेद्य, धूप, फल, अक्षत आदि उन्हें अर्पित करने चाहिए। माखन, मिश्री, खीर का भोग भी आप लगा सकते हैं। अंत में प्रसाद का वितरण करने के साथ आपको पूजा समाप्त करनी चाहिए।

होलिकाष्टक 7 मार्च से शुरू होने से सभी ग्रह होंगे उग्र
होलाष्टक इस बार 7 मार्च से शुरू हो रहे हैं और 13 मार्च को खत्म हो रहे हैं। होलिका दहन के बाद 14 मार्च को धुलेंडी है, इस दिन लोग खूब रंग से खेलते हैं। होलाष्टक फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होती है और पूर्णिमा तिथि को समापन होता है।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया की होलाष्टक में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, मुंडन, नामकरण, गृह प्रवेश आदि कार्य करना वर्जित हैं। होलाष्टक में सभी ग्रह उग्र अवस्था में आ जाते हैं और नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है इसलिए इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।
होलाष्टक के समय दान और व्रत का भी महत्व है। इस दौरान वस्त्र, अन्न, धन आदि का दान करना शुभ माना जाता है।यह कष्टों से मुक्ति और अनुकूल फल देता है।
होली का डंडा कब गड़ेगा
होलिका दहन का डंडा होलाष्टक में गाड़ा जाता है। होली का डंडा भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका की स्मृति का प्रतीक है।इस डंडे के आसपास लकड़ी और कंडे लगाए जाते हैं और फिर होलिका दहन के दिन इसे अग्नि दी जाती है।
होलिकाष्टक के दौरान रहते हैं सभी ग्रह उग्र
होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य की मानसिक स्थिति पर नकारात्मक बदलाव आता है जिससे उसकी निर्णय लेने की क्षमता भी कमजोर हो जाती है जिसके कारण कई बार उससे गलत निर्णय भी हो जाते हैं। इस कारण हानि की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए जनमानस को इन आठ दिनों में महत्वपूर्ण कार्यों का निर्णय लेने से बचना चाहिए और यदि जरूरी हो तो बहुत अधिक सतर्क रहकर निर्णय लेने चाहिए।

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